Friday, 26 July 2019

पथ मेरा आलोकित कर दो कविता

            पथ मेरा आलोकित कर दो 

पथ मेरा आलोकित कर दो 
नवल प्रातः की नवल रश्मियों से 
मेरे उर का ताम हर दो
                मैं नन्हा - सा पथिक विश्व के
                 पथ पर चलना सीख रहा हूँ 
                 मैं नन्हा -सा विहग विश्व के 
                 नभ में उड़ना सिख रहा हूँ  
 पहुंच सकूँ निर्दिष्ट लक्ष्य तक
 मुझको ऐसे पग दो,पर दो।।

 पाया जग से जितना अब तक 
और अभी जितना मैं पाऊं
मनोकामना है यह मेरी
उससे कहीं अधिक दे जाऊं।

धरती को ही स्वर्ग बनाने का
 मुझको मंगलमय वर दो ।।

  लेखक - द्वारिका प्रसाद महेश्वरी
       
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1 comment:

  1. आपके द्विय कर्म से पुस्तकों के शब्द पाठकों के हृदय तक पंहुच कर द्विय रस की अनुभूति अवश्य करायेंगे |

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